हिरोशिमा |chapter 7 | सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय|पद्य खण्ड

जय हिन्द। इस पोस्‍ट में बिहार बोर्ड क्लास 10 हिन्दी किताब गोधूली भाग – 2 के पद्य खण्ड के पाठ 6 ‘हिरोशिमा’ के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। इस कविता के कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय‘ है । अज्ञेय जी ने इस पाठ में अमेरिका द्वारा जापान पर गिराए गए परमाणु बम से जो विनाश हुआ है उस दुर्दशा का चित्रण किया है|(Bihar Board Class 10 Hindi सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय ) (Bihar Board Class 10 Hindi हिरोशिमा )(Bihar Board Class 10th Hindi Solution)

  • कवि का नाम – सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय’
  • जन्म – 7 मार्च 1911 ई०
  • मृत्यु – 4 अप्रैल 1987 ई०
  • जन्म स्थान – कसेया, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
  • मूल निवास – कर्तारपुर (पंजाब)
  • माता का नाम – व्यंती देवी
  • पिता का नाम – डॉ० हीरानंद शास्त्री ( प्रख्यात पुरातत्त्वेत्ता )
  • प्रारंभिक शिक्षा – लखनऊ में घर पर
  • मैट्रिक – पंजाब विश्वविद्यालय (1925 ई० में )
  • इंटर – मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज ( 1927 ई० में )
  • बी० एससी०– फोरमन कॉलेज, लाहौर से (1929 ई० में)
  • एम० ए० (अंग्रेजी में ) – फोरमन कॉलेज, लाहौर
  • अज्ञेय बहुभाषाविद् थे।
  • इनकी भाषा – संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी, फारसी, तमिल आदि ।
  • वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, कथाकार, विचारक एवं पत्रकार थे।
  • प्रमुख रचनाएँ : –
    • काव्य : ‘भग्नदूत’, ‘चिंता’, ‘इत्यलम’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘सदानीरा’ आदि।
    • कहानी संग्रह : ‘विपथगा’, ‘जयदोल’, ‘ये तेरे प्रतिरूप’, ‘छोड़ा हुआ रास्ता’, ‘लौटती पगडंडियाँ’ आदि।
    • उपन्यास : ‘शेखर एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’,
    • यात्रा-साहित्य : अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूँद सहसा उछली’;
    • निबंध : ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘अद्यतन’, ‘भवंती’, ‘अंतरा’, ‘शाश्वती’ आदि।
    • नाटक : ‘उत्तर प्रियदर्शी’; संपादित ग्रंथ ‘तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, ‘तीसरा सप्तक’, ‘चौथा सप्तक’, ‘पुष्करिणी’, ‘रूपांबरा’ आदि।
  • अज्ञेय ने अंग्रेजी में भी मौलिक रचनाएँ कीं और अनेक ग्रंथों के अनुवाद भी किए।
  • वे देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे।
  • पुरस्कार – साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ, स्रुगा (युगोस्लाविया) का अंतरराष्ट्रीय स्वर्णमाल आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए। अज्ञेय हिंदी के आधुनिक साहित्य में एक प्रमुख प्रतिभा थे।
  • उन्होंने हिंदी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया।
  • सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ को पेश किया।
  • प्रस्तुत कविता ‘सदानीरा’ कविता संग्रह से यहाँ लिया गया है।
हिरोशिमा

एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौकः
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से ।

अर्थ – कवि कहता है कि एक दिन अचानक सूरज निकला। यह सूरज क्षितिज से नहीं निकाला था , बल्कि शहर के चौक पर धूप बरसी पर अंतरिक्ष से नहीं। यह सूरज अमेरिका द्वारा गिराए गए परमाणु बम था। लोग गर्मी से जलने लगे। यह धूप की गर्मी नहीं थी। यह गर्मी बम विस्फोट से उत्सर्जित किरणों की थी। गर्मी फटी धरती की थी।


छायाएँ मानव-जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ीं- वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के :
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में ।

अर्थ – कवि कहता है कि मनुष्य की छायाएँ दिशाहिन हो कर चारों ओर बिखरी। यह सूरज पूरब में नहीं उगा था । यह अचानक बरसा शहर के बीचों – बीच। यह प्रकाश सूर्य का नहीं, बल्कि मानव के नृशंसता का था, जिसमें मानवता झुलस रही थी। कवि कहता है कि नगर के बीच यह सूरज काल बनकर अचानक बरसा । जैसे उसके रथ के पहिए के अरे टूटकर बिखर गया हो। अतः बम फटते हि विध्वंसक पदार्थ मौत बनकर दशों दिशाओं में नाचने लगे।


कुछ क्षण का वह उद्य-अस्त !
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी ।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-हो कर :
मानव ही सब भाप हो गये ।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर ।

अर्थ – कवि कहता है कि बम गिरने के बाद कुछ छन में ही विनाशलीला का दृश्य मन्द पड़ने लगा। दोपहर तक सारी लीला खत्म हो गई तथा मानव शरीर भाप बनकर वातावरण में मिल गया, परन्तु यह दुर्घटना आज भी झुलसे हुए पत्थरों और उजड़ी हुई सडकों पर के रूप में निशानी है।


मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बना कर सोख गया ।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।

अर्थ – मानव के द्वारा बनाया गया यह सूरज अर्थात बम मानव को ही भाप में बदलकर मिटा दिया। पत्थर पर लिखी हुई वह जलती छाया अर्थात् विकृत रूप मानव के नृशंसता का गवाह है।

हिरोशिमा

उत्तर– हिरोशिमा शीर्षक कविता में कवि अज्ञेय जी ने जिस सूरज का उल्लेख किया है वह प्रतिदिन पूरब दिशा में उगने वाला सूरज नहीं है। वह एक दिन सहसा निकलने वाला सूरज है। वह पूर्वी क्षितिज पर नहीं निकल कर हिरोशिमा नगर के चौक पर निकलता है। वह सूरज प्रकृति का सूरज नहीं है बल्कि मानव द्वारा रचा गया सूरज यानी परमाणु बम है।

उत्तर – छाया प्रकाश की दिशा के विपरीत दिशा में बनती है। उगते हुए सूर्य के प्रकाश में छायाएं पश्चिम दिशा की ओर बनेंगी। पर परमाणु बम के विस्फोट से निकलें सूरज की रोशनी में मानव जन की छायाएं दिशाहीन स्थिति में सब और पड़ी। उस विस्फोट से एक ही साथ विभिन्न दिशाओं में अनेक सूरज उत्पन्न हुए। जिन की रोशनी में मानव जन की छायाओं को एक निश्चित दिशा में बनना संभव नहीं था। काल सूर्य के रथ के पहियों के अरे दस दिशा में बिखर गए थे। अतः मानव जन की छायाएं दिशाहीन होकर सभी ओर पड़ी।

उत्तर – दिन के समय को तीन भागों में बांटा गया है। उनमें मध्याह्न यानी दोपहर के वेला में सूर्य की किरने प्रखर होती है। यानी यह वेला पूरी तरह गर्म होती है। कवि कहता है कि परमाणु बम रूपी सूरज ने जिस प्रखरता पूर्ण दोपहर की सृष्टि की , वह दोपहर क्षण भर का था पर उसने अपने संहारक रूप से , ताप से सारा विनष्ट कर दिया।

उत्तर – मनुष्य की छाया दिशाहीन सब और पड़ी थी। क्यों भौतिक सत्य है कि प्राकृतिक सूर्य के विपरीत दिशा में छाया निर्मित होती है पर एटम बम रूपी कॉल के समान सूर्य के रथ के पहियों के आरोप के टूट टूट कर दो। सौ दिशा में बिखरने के कारण छाया विपरीत दिशा में निर्मित नहीं होकर एक ही साथ सारे दिशा में निर्मित हो रही थी।

उत्तर – हिरोशिमा सुप्रसिद्ध कवि अज्ञेय जी की एक मशहूर रचना है जिसमें उन्होंने हिरोशिमा की त्रासदी को स्पष्ट किया है। अमेरिका ने दोपहर के समय हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया जिसके कारण मनुष्य वाष्प बनकर उड़ गए हैं, जहां कभी मानवों का निवास था। आज वहां साखी के रूप में पत्थरों पर लिखी हुई जली हुई मानवों की छाया है।

उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग 2 में संकलित हिरोशिमा शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचनाकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ है।

कवि के अनुसार प्रकृति का सूरज पूरब में उगता है पर मानव निर्मित सूरज हिरोशिमा में पूर्व में नहीं उगा। वह अचानक हिरोशिमा नगर के बीचों – बीच एक चौक पर उगा अर्थात वह सूरज बीचो-बीच बरस पड़ा। वह सूरज मानव निर्मित परमाणु बम का सूरज था, जिसके उगने से हिरोशिमा में चीख-पुकार मच गई।

उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग 2 में संकलित हिरोशिमा शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचनाकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हैं।

कवि के अनुसार हिरोशिमा में मनुष्यों के छाया दिशाहीन सब ओर पड़ी थी। यह भौतिक सत्य है कि प्राकृतिक सूर्य के विपरीत दिशा में छाया निर्मित होती है पर काल सूर्य के रथ के पहियों के अरों के टूट टूट कर दसों दिशाओं में बिखरने के कारण छायाएं विपरीत दिशा में निर्मित नहीं होकर एक ही साथ सारी दिशाओं में निर्मित हो रही थी। काल सूर्य के रथ के पहियों के अरे लघु दीप्त सूर्य के समान सभी और बिखरे हुए थे और छायाओं के निर्माण का भौतिक नियम विखंडित हो रहा था।

उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक के गोधूलि भाग 2 में संकलित हिरोशिमा शीर्षक कविता से ली गई है, जिसके रचनाकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ है।

कवि के अनुसार प्रकृति के सूर्य ऊर्जा का भंडार है। वह समस्त जगत के जीवन का स्रोत है। सूर्य ही अपनी उर्जा से जीवो में प्राणों का संचार करता है। वह जीवन दाता है। जीवन रक्षक है, पर मानव ने जिस सूरज को रचा है वह सूरज तो प्राणों को लेने वाला है। वह सूरज एक साथ उदित होकर मानव को काल के मुंह में ढकेल देता है वह मानव को भाप बनाकर सोख लेता है।

उत्तर – आज के युग में दुनिया हथियारों के निर्माण में लगी है। कहीं भी शांत वातावरण नहीं है। हर देश अपने आप को परमाणु शक्ति संपन्न बनाकर अपनी क्षमता दिखलाना चाहता है। यदि यही स्थिति रही तो हिरोशिमा जैसी घटनाएं पुनः घट सकती है। अज्ञेय जी द्वारा रचित हिरोशिमा कविता इसी बात की ओर संकेत करता है।

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